Sunday, September 27, 2015

व्यंग्य: एक डेंगू मच्छर का इंटरव्यू

व्यंग्य: एक डेंगू मच्छर का इंटरव्यू

दिल्ली में डेंगू का कहर मचाने वाले एक मच्छर ने अपना इंटरव्यू दिया है...अब इंटरव्यू मच्छर का है तो चर्चा तो होनी ही थी.

सवाल-आप महामारी क्यों फैला रहे है? आपका प्रकोप बढ़ता जा रहा है?

जवाब-जिसे आप प्रकोप कह रहे हैं, वो हमारी लोकप्रियता है. आज उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश और हरियाणा से दिल्ली तक हर शख्स डेंगू-डेंगू कर रहा है. हमारी लोकप्रियता का सेंसेक्स स्टॉक मार्केट से भी ऊपर है.

सवाल-लेकिन आप बीमारी फैला रहे हैं. ये अच्छी बात नहीं है.

जवाब-तुम इंसानों के यहां अभी भी स्कूलों में गीता पढ़ाने को लेकर विवाद है. लेकिन हमने पैदा होते ही गीता सार समझ लिया-कर्म कर फल की चिंता मत कर. तो हमारा पूरा समाज कर्म कर रहा है.

सवाल-लेकिन आप गरीबों को ज्यादा सताते हैं?

जवाब-ये निराधार आरोप है. डेंगू मच्छर धर्म निरपेक्ष, शर्म निरपेक्ष और शिकार निरपेक्ष है. हम न धर्म के आधार पर भेद करते हैं और न अमीर-गरीब देखकर डंक मारते हैं.

सवाल-डेंगू मच्छर इंसानों को मौत के मुंह में ले जा रहे हैं. आखिर आप साबित क्या करना चाहते हैं?

जवाब-मच्छर एक गाली हो गई है. मच्छर शब्द कमज़ोरी का प्रतीक बन गया है. और हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि कृपया मच्छर समाज को मच्छर न समझें. दुनिया में हर साल साढ़े सात लाख लोगों को मच्छर कम्यूनिटी ऊपर पहुंचकर बता रही है कि उन्हें सीरियसली लिया जाए. भारत में डेंगू मच्छर इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रहे हैं और उन्हें खासी कामयाबी भी मिली है.

सवाल-लेकिन जान लेकर ही क्यों ?

जवाब-देखिए हमारा पहला मकसद लोगों को अस्पताल पहुंचाना ही होता है. हम दरअसल राष्ट्र की समृद्धि में योगदान भी देना चाहते हैं. क्योंकि पीड़ितों की वजह से अस्पतालों का, डॉक्टरों का, पैथोलोज़ी लैब का, दवाइयों की दुकानों का टर्नओवर बढ़ता है और इससे देश की जीडीपी में बढ़ोतरी होती है. लेकिन कुछ लोग चल बसते हैं तो उनकी अपनी गलती की वजह से. वक्त पर अस्पताल न पहुंचकर, खुद डॉक्टर बनकर और सुनी सुनाई बातों पर यकीन कर वे खुद अपनी जान लेते हैं. हमारा कोई दोष नहीं.

सवाल-आपने कहा कि आप अमीर-गरीब में फर्क नहीं करते. लेकिन डेंगू मच्छर कभी नेताओं को नहीं डसता. उन्हें कभी अस्पताल नहीं पहुंचाता?

जवाब-मैं शर्मिन्दा हूं. निश्चय ही आपका यह आरोप सही है कि हम नेताओं को नहीं काटते. दरअसल, बीते कई साल से हमारी कोर कमिटी इस बात पर बहस कर रही है लेकिन हर बार यही तय होता है कि राजनेताओं को काटने से हमें खुद डेंगू जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है. हो सकता है कि ऐसी कोई बीमारी हो जाए-जिसका इलाज ही ना हो. मैं सिर झुकाकर यह आरोप स्वीकार करता हूं.

सवाल-आखिरी सवाल, आपका प्रकोप 20 साल पहले तक नहीं था. कोई नहीं जानता था डेंगू को. अचानक कैसे आपका उदय हो गया?

जवाब-इंसान जब मच्छर जैसी हरकत करने लगा. गदंगी खुद फैलाए और नाम हमें धरने लगा. तो हमें भी लगा कि इंसानों को उनकी औकात बता दी जाए.
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